इटावा टिक्सी टेम्पल जो कि यमुना नदी से सिर्फ 500 km दूरी पर गवालियर-इटावा रोड पर स्थित है, यह मंदिर बरसों से श्रदालुओं का केंद्र रहा है ,यहाँ विशेष तौर पर शिव भक्तों का आना जाना रहता है |
ऐसा माना जाता है की यहाँ बरसों पहले बिशिष्ट मुनि द्वारा धरातल से ऊपर एक शिवलिंग की स्थापना की थी
यह इलाका पहले पूरा भीहड़ इलाका था जहाँ बिशिष्ट मुनि ने बिष्टलेश्वर भगवान की स्थापना की थी |
इटावा टिक्सी टेम्पल का इतिहास
लेकिन ऐसा माना जाता है की पानीपत के 3 युद्ध मैं अह्मद्शाह अब्दाली का साथ देने वाले इस छेत्र के नबाबों
को हराने की मन्नत पूरी होने पर मराठा सरदार सदाशिव भाऊ ने 1780 मैं इसका निर्माण पुराय कराय था
जिसका एंट्री इटावा गजिजटरी मैं लिखी है।
उस समय इटावा से फरूखबाद तक नबाबों का राज था जो कि सैन्य बल मैं काफी सशक्त हुआ करते थे और उन्हें हाराने के लिए मराठा सरदार अपनी सेना के साथ गवालियर यमुना तट पर आ पहुँचे थे ,ऐसा कहते है की वहां के श्रद्धालुं ने उनसे आग्रह किया की आप भगवान बिश्लेश्वर का अभिषेक कर जीत की कामना करनी चाहिए ,उससे के फल स्वरुप जब मराठा सरदार ने नबाबों का हराया तो उन्होंने इटावा टिक्सी टेम्पल की सीढ़ियां और छत का निर्माण कराया था |
को हराने की मन्नत पूरी होने पर मराठा सरदार सदाशिव भाऊ ने 1780 मैं इसका निर्माण पुराय कराय था
जिसका एंट्री इटावा गजिजटरी मैं लिखी है।
उस समय इटावा से फरूखबाद तक नबाबों का राज था जो कि सैन्य बल मैं काफी सशक्त हुआ करते थे और उन्हें हाराने के लिए मराठा सरदार अपनी सेना के साथ गवालियर यमुना तट पर आ पहुँचे थे ,ऐसा कहते है की वहां के श्रद्धालुं ने उनसे आग्रह किया की आप भगवान बिश्लेश्वर का अभिषेक कर जीत की कामना करनी चाहिए ,उससे के फल स्वरुप जब मराठा सरदार ने नबाबों का हराया तो उन्होंने इटावा टिक्सी टेम्पल की सीढ़ियां और छत का निर्माण कराया था |
मंदिर के निर्माण को लेकर कुछ लोग ये भी बोलते है की इसका निर्माण लाखा बंजारा ने बहुत पहले लाखा का कुआ ,लाखा का तालाब तथा अन्य चीजों के साथ कराया था। इतिहासकारों को इसके कुछ ठोस सबूत नई मिले लेकिन कई जानकार टैक्सी टेम्पल के नाम को लेकर एक मत नई हैं उनका मानना है की इससे टिकरी मंदिर के नाम से बोला जाता था क्यूंकि उस समय वहां के भक्तों ने शिवलिंग के ऊपर एक टिकरी (छत ) बनाकर एसी व्यवस्था की थी कि शिवलिंग पर एक एक बूँद करके जाल का अनुष्ठान हो इसलिए उस समय मंदिर टिकरी मंदिर के नाम से जाना जाता था ,कुछ लोग इसे बिषलेश्वर मंदिर के नाम से जानते थे वर्तमान मे इसको टिक्सी टेम्पल के नाम से जानते हैं।
मंदिर के पुजारी बताते है की सावन के महीने मे यहाँ भक्तों का ताता लगा रहता है। सीडियो से ऊपर आकर बीच मैं एक प्रमुख भगवान की शिवलिंग इस्थित है वहीँ चार गोल गुमज मैं छोटे छोटे दिवी -देवताओं के मंदिर हैं ,मंदिर के ऊपर से एक तरफ इटावा का मनमोहक द्रश्य दिखता है तो एक और दूर तो फैला घना भीहड़ | मंदिर मे सुबह 6 -7 और शाम को 7 -8 के बीच मैं आरती की जाती है जहाँ भक्त जन जाकर भगवान शिव की असीम कृपा का आनंद लेते हैं मंदिर के चारो और कई और छोटे छोटे मंदिर हैं जैसे नाध्वी देवी का मंदिर भी है और भक्तों के रुकने का भी अच्छा इन्तजाम है |
ऐसा बोला जाता है की टिक्सी टेम्पल की चोटी और इटावा रेलवे स्टेशन के ऊंचाई बराबर है इससे पता चलता है की इटावा मैं कितना स्लोप है यह बात 1978 मैं आयी बाढ़ से पता चला था।
मंदिर के पुजारी बताते है की सावन के महीने मे यहाँ भक्तों का ताता लगा रहता है। सीडियो से ऊपर आकर बीच मैं एक प्रमुख भगवान की शिवलिंग इस्थित है वहीँ चार गोल गुमज मैं छोटे छोटे दिवी -देवताओं के मंदिर हैं ,मंदिर के ऊपर से एक तरफ इटावा का मनमोहक द्रश्य दिखता है तो एक और दूर तो फैला घना भीहड़ | मंदिर मे सुबह 6 -7 और शाम को 7 -8 के बीच मैं आरती की जाती है जहाँ भक्त जन जाकर भगवान शिव की असीम कृपा का आनंद लेते हैं मंदिर के चारो और कई और छोटे छोटे मंदिर हैं जैसे नाध्वी देवी का मंदिर भी है और भक्तों के रुकने का भी अच्छा इन्तजाम है |
ऐसा बोला जाता है की टिक्सी टेम्पल की चोटी और इटावा रेलवे स्टेशन के ऊंचाई बराबर है इससे पता चलता है की इटावा मैं कितना स्लोप है यह बात 1978 मैं आयी बाढ़ से पता चला था।
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